वंशीधर का विरह
वंशीधर का विरह
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पग-पग साथ दिया तुमने,
बनकर कृष्णा मेरे रहिमाना।
यूं ही सदा मेरे गिरधर—–
कट जायेगा जीवन का सफर,
तुम मेरे ही रहना ।।
चाहे लाख तूफान ही आए,
पथ से मेरे दूर न जाना।
बनकर हमराज मेरे—-
सदा बनाकर रखना मुरलिया,
अधरों के पास ही रखना।।
साल रही है दूरी तुमसे,
मोहन दारूण हो गए तुम।
कब से राह देखती—-
मुझ विरहन को आस तुम्हारी,
बाट जोहते हर-पल हम।।
पुलकित हे उर चाह में तेरी,
मिलन की आस लिए।
करूणाकर रहम करना—
जर्रा-जर्रा आतुर है मोहन,
सांवल रूप बसा हिए।।
दरश की प्यासी अंखियां मेरी,
भीगी हैं बरसात सी।
रिमझिम-रिमझिम बरसे नैना—
जब याद तुम्हारी आती कान्हा,
साथ में बीते प्यारे दिनों की।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,