लोकतंत्र पिंजरे में बंद
लोकतंत्र पिंजरे में बंद
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लोकतंत्र पिंजरे में बंद है
सोने का पिंजरा है. अधर में लटका है
हीरे मोती जड़े हैं इसमें
तोते को ला कर पटका है
नयी नयी ग़ुलामी मिली है
बग़ावत का खटका है
दे दी हैं गाजर मिर्ची
खा रहा है फिर भी
गा रहा है राम राम
पाँव पर रखे पाँव
पिंजरे में है बड़े आराम
तुम भी सीखो तुम भी गाओ
बस लोककंत्र बचाओ
लोकतंत्र का आधार खिसका है
पत्थर पत्थर पर काई जमा है
क़दम क़दम गणतंत्र फिसला है
विश्वासों की नदी गहरी है
बार बार इसे चोट लगी है
ऐसे ही डूब जायेगा
शायद ही बच पायेगा
हाथ बड़ाओ:मदद करो कुछ
घायल बड़ा है
लोकतंत्र की हत्या हो गई
सारे इर्द गिर्द खड़े हैं
कुतर रहे चूहे चमगादड़
नोच नोच कर खा जायेंगे
अभी अभी तो गिद्ध उड़े हैं
है कहां संविधान हमारा
वो भी तो निष्प्राण पड़ा है
रोज़ रोज़ की हत्यायों से
मतदाता परेशान बड़ा है
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राजेश’ललित’