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6 Jun 2024 · 1 min read

लोकतंत्र के प्रहरी

लोकतंत्र के प्रहरी –

झूठे वादों की धुन पर नाचते जनतंत्र के प्रहरी ,
हर वादा किताबी किस्से की झूठी दास्तान है ।

दबी सच की आवाज ,सजने लगा राजनीति का रंगमंच ,
हर मुखौटे के पीछे जो छुपा चेहरा अनजान है ।

आइना लोकतंत्र का नहीं दिखाता असली चेहरा,
हर रूप यहाँ नज़रों का धोखा, हर सूरत बेईमान है।

उम्मीदों के घोड़े पर सवार, चढ़े हैं सत्ता के रखवाले ,
भोली जनता के सीने में दफ़न लाखों अरमान है।

जाति,धर्म,की लगाकर आग ,सेक रहे मतलब की रोटियां,
मतपेटी में बंद वोटों की हकीकत , क्या सच में अनजान है?

राजनीती के रंगमंच में तालियाँ बजवाने को ,
मसखरों और जुमले बाजों से सजा मचान है ।

लोकतंत्र के दर्पण का कितना झूठ कितना सच ,
जो दिखे वो असलीयत का ‘असीमित’ प्रमाण है ।

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