लॉकडाऊन का असर है
लॉकडाऊन का असर है
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लॉकडाऊन का असर है
जिन्दगी बन गई लचर है
हाल बद से बदत्तर हुआ
प्रकृति रौद्र रूप पहर है
अस्तव्यस्त जनजीवन है
थम गया ये गाँव शहर हैं
नित्यकृत्य भी रुक गए
हर शख्श बेरोजगार है
मजदूर मजबूर हो गया
घर बाहर मौत कहर है
निज कैद में नजरबंद है
खाली खाली ये नजर हैं
कोरोना प्रभाव देखिए
खुद रहीं यहाँ पर कब्र हैं
बेइंतहा हो गई हैंं बंदिशें
टूटने लग गया ये सब्र हैं
फल इंसानी कृत्यों का
इन्सान हो रहा बेकद्र है
पापों का घड़ा मर गया
पापों का ये सब हस्र है
मोह,लोभ,क्रोध रत था
निजस्वार्थों का प्रखर है
धर्म,जाति में संलिप्त था
निकल रहा अब जहर है
सुखविंद्र अब समझ जा
नासमझी की ये कसर है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)