लैला मजनू
लैला का नया रूप
लैला अब नहीं थामती, किसी बेरोजगार का हाथ, मजनू को इश्क़ है सच्चा, तो कमाने लगे वो भी साथ।
प्यार की आग जलाए रखने, ज़रूरी है रोटी का सहारा, खाली हाथों से प्यार ना टिके, ये है सच का सहारा।
लैला अब समझदार है, जानती है जीवन का सार, प्यार के साथ ज़रूरी है, घर चलाने का आधार।
मजनू को भी अब समझना होगा, ये बदलता हुआ दौर, मेहनत करके अपना मुकाम, बनाना होगा ज़रूर।
प्यार की कश्ती में डूबने से, पहले तैयारी कर ले, हाथ में हों अगर नाव और पतवार, तो ही पार हो सके।
लैला का इश्क़ है सच्चा, ये है उसकी पहचान, मजनू भी बनकर मेहनती, पाएगा उसका प्यार निशान।
यह कविता लैला और मजनू की प्रेम कहानी को एक नए रूप में प्रस्तुत करती है। जहाँ पहले लैला मजनू के इश्क़ में खोई रहती थी, अब वह समझ चुकी है कि जीवन में सफलता और खुशहाली के लिए केवल इश्क़ ही काफी नहीं है।
आज के दौर में, जहाँ जीवन यापन increasingly expensive होता जा रहा है, रिश्तों को भी मजबूत आधार की आवश्यकता होती है। लैला का यह कहना कि “मजनू को अगर इश्क़ है तो कामना सीखे” , न केवल आत्मनिर्भरता का संदेश देता है, बल्कि रिश्तों में समानता और भागीदारी का भी महत्व दर्शाता है।
यह कविता हमें प्रेरित करती है कि हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करें और अपने जीवनसाथी का भी साथ दें। सच्चा प्यार केवल भावनाओं तक सीमित नहीं होता, बल्कि जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए भी एक दूसरे का सहारा बनना होता है।