लेखनी के शब्द मेरे बनोगी न
मरियाहू की गलियों में वो मुझसे मिली,
वो हमारी उसकी पहली मुलाकात भी ।।
उसने एक दिन कहा, हाय कैसे हो तुम,
क्या अकेले मेरी तरह रहते हो तुम ।।
अपने पाकिजा लब्जों से मेरा नाम लो तुम,
हो अकेले तो फिर हाथ ये मेरा थाम लो तुम ।।
उसकी जानिब मैनें बढ़ाएं कदम,
दूर होने लगे सारे रंजो अलम।।
फूल दिल में वफ़ा का महकने लगा,
मैला मैला मुक्कदर चमकने लागा ।।
खुशनुमा दिन हंसी रात होती रही,
सालभर फोन पर बात होती रही ।।
उसने एक दिन कहा मुझसे रोते हुए,
दूर रहते हैं हम पास होते हुए ।।
आग में क्यों जुदाई के जलते हैं हम,
अब की कालेज के छुट्टी में मिलते हैं हम ।।
उसके ओठों पर चाहत की बरसात का,
उससे वादा था पहली मुलाकात का ।।
हर घड़ी जहन पर मेरे भारी रही,
रात भर एक अजब बेकरारी रही।।
जागते जागते जब शहर हो गयी,
ओ मेरे सामने जलमगर हो गयी ।।
अपने हाथों में लेकर मेरे हाथ को वो,
बयां कर दिया दिल के जज़्बात को ।।
मुझसे कहने लगी मेरी दुनिया हो तुम,
दिल ने जिसको चुना वही राह हो तुम ।।
साथ चलने से पहले इरादा करो,
बनके मेरे रहोगे ये वादा करो ।।
उसका रांझा था मैं वो मेरी हीर थी,
उसकी आँखों में बस मेरी तस्वीर थी।।
आ गये खुशबूओं की पनाहों में हम,
खो गये एक दूजे की बाहों में हम ।।
चूम कर उसके हाथों को,
फिर से मिलने का वादा किया ।।
जाते जाते उसने ये वादा लिया
हर कविता अनंत जिक्र हमारी रहे ।।
लेखनी के शब्द मैं तुम्हारे बनूं ।।