लेंगे लेंगे अधिकार हमारे
जंगल अपना, ज़मीन अपनी
पर न कोई कागज़, न ही टपरी
सरकार बदली, क़ायदा बदला
आदिवासी का हक़ भी बदला
तुम्हारी ये नव नियम कुंडली
हमसे क्यूँ ये ज़मीं छीन ली?
अब जानेंगे हक़ हम सारे
लेंगे लेंगे अधिकार हमारे
जंगल ज़मीं है अनमोल जान ले
विकास नाम पर चोर लुटेरे
क्यूँ आते जाते पुलिस ये तेरे
हमरे घर यूँ धौंस ज़माते
बरसों से हम ये ज़मीन जोतते
फिर भी हम क्यूँ बिन घर के?
अब जाने हैं हक़ हम सारे
लेंगे लेंगे अधिकार हमारे!!
©️ रचना ‘मोहिनी’