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10 May 2024 · 1 min read

लालच

मैंने लालच से पूछा एक दिन
तू इतना मोटा है कैसे
तेरा आहार क्या है ?
जो इतना फल फूल रहा है।
कद तेरा इतना कैसे
बढ़ता ही जा रहा है।
वह कौन सी औषधि है?
जो तुझको है लंबा करती।
लालच भी मुझसे बोला
अपने तो बस मजे है?
मनुष्य घर है अपना
वहाँ मिलता ऐशो आराम है।
मैं धन संपदा को खाता
रुपया पैसा तरल है
बस उसी को हूँ मैं पीता।
इंसान की शकल में
मैं पुष्ट होकर जीता।
मैं कल भी जी रहा था
और आज भी जी रहा हूँ
मेरी उम्र बहुत है लंबी
आगे भी जीता रहूंगा।

-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’

Language: Hindi
73 Views

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