*लगा है रोग घोटालों का (हिंदी गजल/गीतिका)*
लगा है रोग घोटालों का (हिंदी गजल/गीतिका)
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(1)
दवा जो कर नहीं पाती, समय वह काम करता है
समय सबसे बड़ा मरहम, समय हर घाव भरता है
(2)
लगा है रोग घोटालों का ,अपने देश को ऐसा
दवा जितनी करोगे ,पैर उतना ही पसरता है
(3)
बड़े लोगों की पैसों की हवस कम ही नहीं होती
हुनर हर रोज घोटालों को करने का निखरता है
(4)
बहुत डरपोक ही होंगे, जो घोटाले नहीं करते
यहाँ करने से घोटालों को, वरना कौन डरता है
(5)
बड़े नेता-बड़े अफसर, बड़े उद्योगपतियों को
इकट्ठा नाम दो कोई, तो “घोटाला” उभरता है
(6)
बड़े लोगों की छोटी हरकतें सबको पता हैं पर
बड़े लोगों को छुट्टा छोड़ देना अब अखरता है
(7)
किनारे पर खड़े होने से, नदिया पार कब होगी
जिसे उस पार जाना है, वह नदिया में उतरता है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ.प्र)
मो. 9997615451