लक्ष्य
भटक रही हूँ लक्ष्य बिन, मंजिल से अंजान।
जाऊँ कैसे किस दिशा, नहीं मुझे पहचान।१।
लक्ष्य हीन ऐसी दशा, ज्यों मुरझाये फूल।
जीवन पग-पग पर लगे, जैसे चुभते शूल।२।
लक्ष्य भेद पाई नहीं, सदा गई मैं चूक।
उलझन में उलझी रही, अंतस भर कर हूक।३।
सदा जंग खाता रहा, ज्यों तरकस में तीर।
मेरे हिस्से में मिला, केवल बहता नीर।४।
आप निकल आये कहाँ, निज लक्ष्यों को नाप।
केवल बसते हैं जहाँ, आस्तीन के साँप।५।
लक्ष्य साधना है अगर, करो धैर्य से कर्म।
अगर-मगर करना नहीं, पूरा करना धर्म।६।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली