लक्ष्य का जूनून
जा रहे थे सड़क से कहीं दूर तुम,
मैं खड़ा किनारे पे राह तकता जा रहा था।
भाग रही थी सड़क तुम्हारी इस जहां से दूर कहीं,
मैं बस यूंही खड़ा किनारे पे ,
तुमको मंजिल पाता देख रहा था।
देखा तो पाया मैने मंजिल थी दूर कहीं,
पर जिद करके मंजिल को पाना ,
ये ही चाह थी तुम्हारी।
अनिरुद्ध पांडेय