रोशनी
दरम्याना रोशनी में लगा कि कोई साया मुझे ताक रहा है!गहरी हंसी गूंज गयी और फिर लंबा अटहास देर तक दूर तक वहीं कहीं गूंजता रहा।
बंद खिड़की के शीशों से आती मटियाली धीमी रोशनी में आकृतियां हिलती-धूलती रही पर कहीं भी अपनापन न दिखा।तुम्हे छूते ही कहीं अंतर्मुग्ध हो गया तुम छिपे हो यहीं कहीं किसी पन्ने के ख़ास प्रकरण में!
मनोज शर्मा