रोम रोम में राम बसे- हरिगीतिका छंद
रोम रोम में राम बस
अति मोहनी सुंदर सुभग श्री राम चरितं पावनी।
खर दूषणं बध सिय हरण, गोदावरी तट पूजनी।
त्वम!कुल शिरोमणि सूर्य वंशी,” प्रेम” करते हैं नमन।
पुरुषोत्तमम हे! सुंदरम हे! नायकं मनभावनम।
शर राम शरणम हनुमतम हे !रामदूतं वंदितं।
सत!मातु सेवक अंजनी सुत सिद्धि बुद्धि प्रदायकं।
त्वम मंगला हे! ज्ञानसागर गुण निधे प्रणमामि मम।
वर दान दें हनुमानजी कर दो कृपा है शीश नत।
जब खोजते हैं प्राण प्रिय को वन भटकते राम हैं।
तब भेंट कर श्री राम से हरते व्यथा हनुमान हैं।
शिव लिंग बनाया राम ने शिव पूजते श्री राम हैं।
सिय खोजकर लंका दहे, हैं मानते श्री राम हैं।
डॉ प्रवीणकुमार श्रीवास्तव, प्रेम