रोटी
रोटी क्या क्या नाच नचाती
जाने क्या क्या खेल खिलाती।
रोटी रिश्ते नाते परिवार छुड़वाती
रोटी दोस्त दुश्मन से मिलवाती।।
रोटी बोटी कटवाती ,बोटी से रोटी,
रोटी से बोटी अच्छों अच्छों से जाने क्या क्या करवाती।।
रोटी भीख मंगवाती ,रोटी अपराध कराती।
रोटी घर परिवार दूर ले जाती माँ बाप का प्यार साथ छुड़वाती।।
मातृ भूमि के आँचल कि छाया से कही माया का मार्ग दिखती वासी को प्रवासी ,प्रवासी को वासी बनाती।।
रोटी रंजिस कि जड़ हर फसाद कराती ।
हाय रे रोटी जाने क्या क्या राह दिखाती।।
रोटी मान ,अपमान कराती ,रोटी कभी रुलाती कभी हँसाती।
रोटी आबरू बिकवाती रोटी करम रहम का साथ निभाती।।
रोटी कायर ,कमजोर बनाती
रोटी मजबूर ,मजदुर बनाती
तड़पती आँखों के आंसू से रोटी
अपना एहसास कराती।।
रोटी कि खातिर लड़ता इंसान
रोटी कि खातिर मरता इंसान
रोटी कि खातिर जीत इंसान।।
रोटी महँगी ,जान है सस्ती रोटी कि खातिर जान भी देता जान भी लेता है इंसान।।
दहसत ,आफत ,कहर ,झंझावात तूफ़ान झेलता इंसानएक रोटी के वास्ते
जाने क्या क्या करता है इंसान।।
भय में जीता ,भ्रम में जीता
लम्हा लम्हा घुट घुट कर जीता।
घिसट घिसट कर जीता पल पल जीत मरता इंसान।
इंसानो में जीवन का जिन्दा
विश्वाश कराती रोटी।।
कोइ मख्खन से खाता ,
किसी को सुखी भी नहीं
मिल पाती कोई कचड़े कि रोटी
खाता राजा हो या रंक सबका
एक रोटी से नाता।।
जब मिल जाती सस्ते में मिल जाती।
कीमत नहीं समझ पाता इंसान।
मेहनत ,मसक्कत पर भी नहीं
मिलती दर दर ठोकरे खाता
इंसान।।
अलग अलग रोटी की पहचान
मज़लूम कि रोटी ,किस्मत भगवान्।
तक़दीर कि रोटी ,तदवीर कि रोटी
रोजी रोटी जाने क्या क्या नाम।।
झगड़े, फसाद ,बलवा ,बवाल कराती ।
बेटी रोटी करवाती, धर्म ,धंधा ,चोरी
करवाती कभी हँसाती कभी रुलाती रोटी।।
जाने क्या क्या दौर दिखाती रोटी
रोटी रहमत ,रहम, रहीम ,करीम
खुदा भगवान्।
किस्मत कि रोटी, बैचैन करती रोटी, चैन कि रोटी रोटी से इंसान।।
मैंने पूछा माँ से इंसान बड़ा या भूख बड़ी या रोटी?
रोटी है तो भूख नहीं है,भूख नहीं है तो जिन्दा है इंसान।
रोटी पानी कि ताकत से बचपन में मैंने तुझको अपना दूध पिलाया मेरे लाल माँ का मिला जबाब।रोटी ना होती ना होती
कायनात ना होता इंसान।।