रोटी संग मरते देखा
रोटी संग मरते देखा
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बरसों बाद कल परसों देखा
रोता मुख हंसता मुखड़ा देखा।
जगत विपता चढ़ी शिखर
नभ नगाड़े बजते घोर
प्राण पवन में घुला जहर
देव को मुंह फेरते देखा ।
बरसों बाद कल परसों देखा।।
दुनिया ठहरी संकट गहरा
और पेट में बांधा पहरा
दुःखी दास दाता बेहरा
रोटी के संग मरते देखा।
बरसों बाद कल परसों देखा।।
प्रीत के सभी बाजे फूटे
बिखरे मोती धागे टूटे
मानवता है माथा कूटे
नदी में शव तैरते देखा।
बरसों बाद कल परसों देखा।।
थमती सांसें लुटता रोगी
अवसर देखा लपके भोगी
कर्म पथ में बैठे ढोंगी
कांधे विहीन लाशों को देखा।
बरसों बाद कल परसों देखा।।
पथ रुका चलते रहे पांव
भूख -प्यास नहीं मिला छांव
शहर से भला था मेरा गांव
पथ में राही को पिटते देखा ।
बरसों बाद कल परसों देखा।।
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शेख जाफर खान