रोटियों के हाथों में
रोटियों के हाथों में, जब गर्दनें जकड़ी गईं,
सोते हुए पहाड़ के, पैरों को भी चला दिया।
रोटियों के हाथों में, जब गर्दनें जकड़ी गईं,
अकड़े हुए ईमान के, दरख़्त को झुका दिया।
रोटियों के हाथों में, जब गर्दनें जकड़ी गईं,
वक़्त से पहले ही उसकी, मासूमियत को हटा दिया।
रोटियों के हाथों में, जब गर्दनें जकड़ी गईं,
धवल स्वेत दामन पर भी, दाग को लगा दिया।
रोटियों के हाथों में, जब गर्दनें जकड़ी गईं,
ख़्वाब से बनी सभी, तस्वीरों को जला दिया।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”