” रे, पंछी पिंजड़ा में पछताए “
हाय रे हाय
कुछ भी समझ न आए,
रे पंछी, पिंजड़ा में पछताए – २
घंटा गिने,पहरिया गिने
सप्ताह,दिन,दुपहरिया गिने
दिनवा गिनत रह जाए – रे पंछी
अंखियां लोर बहाए
रे पंछी………………………..
रतिया काटे, दिनवा काटे
तन्हाई में मनवा डांटे
दुःखवा केहू ना बांटे – रे पंछी
अंखियां लोर बहाए
रे पंछी……………………….
घरवा छूटल, गंऊवां छूटल
माई बाप के छऊवां छूटल
बचवन मेहरि के तड़पाए – रे पंछी
अंखियां लोर बहाए
रे पंछी………………………….
रिश्ता टूटल, नाता टूटल
नेह के बंधन सबसे छूटल
काहें “चुन्नू” के भरमाए – रे पंछी
अंखियां लोर बहाए
रे पंछी………………………….
हाय रे,अब सालों बीता जाए
रे पंछी, पिंजड़ा में पछताए – २
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)