रेत कह रही है
हवाओं को भी ख़बर है कि कोई हवा आई है।
जिंदगी को दवा और मौत की मेरे दुआ लाई है।
ये बादल बरस रहें इर्द – गिर्द इन रेगिस्तानों के।
और रेत कह रही है कि बादल भिगाने आई है।
वक्त ने गुजारे हैं कई दौर किश्तों में बारी-बारी।
लम्हों ने सब्र से सदियाँ, कई जमानें कमाई है।
शशि “मंजुलाहृदय”