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25 Mar 2021 · 1 min read

रेती में होली

रेती में आई फिर होली!

फूलों ने भर-भर रंग दिया
घाघरा-सरयू ने जल निर्मल।
बँसवारियों ने दी पिचकारियाँ
सीवानों ने मखमली आँचल।

पवनों ने मारू थाप दिए
गा उठी कोकिलों की टोली।
रेती में आई फिर होली!

बहुएँ सब छिपी किवाड़ों में
लखि-लखि निज ससुरों के तेवर।
ड्योढ़ी पर अड़े जेठ बोलें-
‘फागुन भर हम भी हैं देवर!’

समधी के सिर पर खोल दिया
समधिन ने रंगों की झोली।
रेती में आई फिर होली!

री! गाल गुलाबी लाल हुए
धरती रंगों की रंगोली।
संग बाल, श्वान भी दौड़ पड़े
कह, ‘बुरा ना मानो है होली!’

नीला-पीला कर जा बैठी
घर में छिप, सखि बनके भोली।
रेती में आई फिर होली!

(उपर्युक्त कविता मैंने नन्दौर रेती, पसका(सूकरखेत) वि॰ख॰- परसपुर, जनपद- गोण्डा में अध्यापन के समय लिखा था। नन्दौर रेती, विकास खण्ड का बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है, जहाँ प्रतिवर्ष हजारों जिन्दगियाँ तहस-नहस हो जाती हैं, तथापि इनकी जीवटता देखते बनती है।)

✍ रोहिणी नन्दन मिश्र, इटियाथोक
गोण्डा- उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
336 Views

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