रेणुजी की देहाती हिंदी
देश के, हिंदी के, किन्तु खासकर बिहार, कोसी और अररिया के साहित्यरत्न, साहित्य अकादेमी सम्मान से पहले ही फणीश्वरनाथ रेणु प्रणीत ‘मैला आँचल’ की फलक अंतरराष्ट्रीय पहचान लिए स्थापित हो चुकी थी, किन्तु वह फ़ख्त स्वतंत्रता के बाद भारत के एक गाँव की सामाजिक सरोकार लिए कहानी भर है, जो प्रायशः गाँवों में कुछ न कुछ देखी जा सकती है ।
परंतु हाँ, ‘मैला आँचल’ के गाँव के कुछ बगल से एक अंतरराष्ट्रीय सीमा परिदृश्य कराया गया है । रेणुजी की भाषा विशुद्ध हिंदी नहीं, अपितु हिंदी, बांग्ला, नेपाली, मैथिली सहित कई क्षेत्रीय भाषाएँ, यथा- अंगिका, सुरजापुरी, सीमांचली इत्यादि लिए है । यह कोई आंचलिक नहीं है, अपितु कबीरदास की भाँति भाषाओं की खिचड़ी भर है, जो सीमांचल और नेपाल की तलहटी पर बोली भर जाती है।