रूह का छुना
रूह का छुना
ए दोस्त क्या खूब कहते हो तुम
की चाहते हो सबके मन से गुजरना
मगर
क्या कभी छु पाए हो उस मन को तुम जिसने सिर्फ तुम्हारे मन को छुआ है
क्या कभी महसूस कर पाए हो तुम
जिसे सिर्फ तुम्हें महसूस किया हो
क्या कभी पढ़ पाए हो उस अंतर्मन के भाव तुम
जो तुम्हें रखता हो सब रिश्तो में अव्वल काश ए दोस्त
किसी एक के मन का वो कोना
जो पावन पतित रिश्ता सलोना
वो गंगा की धार सा प्रेम
वो अथाह समुद्र एहसासों का
वो जज्बातों का सिलसिला
वो एक रूह से रूह का नाता शायद तब कहीं समझ पाते तुम
क्या होता है किसी के मन से होकर गुजरना