रूप
करें
कर्म ऐसे
बनें सौंदर्य
जीवन में
शारीरिक
रूप है क्षणिक
रहता
अच्छा कुशल
व्यवहार
ता जीवन
रूप हमारा
करना
माता पिता गुरू
का सम्मान
है विशेषता
इन्सान की
है यही
असली सौंदर्य
इन्सान का
नहीं देखता
रूप मौला
है उसका
बस वही शागिर्द
चले
जो नेक ईमान
की राह पर
मांगता है
फकीर झोली
फैला कर
दे दुआओं की
नियामत इतनी
पड़ जाये
रूप फीका
फकीर का
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव
अपने कर्मों से