रूप का उसके कोई न सानी, प्यारा-सा अलवेला चाँद।
रूप का उसके कोई न सानी, प्यारा-सा अलवेला चाँद।
निहारे धरा को टुकुर-टुकुर, गोल-मटोल मटके-सा चाँद।
चुपके-चुपके साँझ ढले वह, नित मेरी गली में आता।
नजरें बचाकर सारे जग से, तड़के ही छिप जाता चाँद।
© सीमा अग्रवाल