रुख़्सत
दिल बेचैन है खुद से जुदा होने को ,
रुह बेचैन है जिस्म़ से फ़ना होने को ,
अश्क़ों के सैलाब उसे अब ना रोक पाएंगे ,
टूटे दिल के तार अब ना जुड़ पाएंगे ,
टूटे दिल के साज़ से सुर नहीं रूदाद ही निकलेगी,
इजहार- ए – उल्फत की सोग़वार आवाज़ ही निकलेगी ,
कफ़स -ए- क़ैद में बुलबुल उड़ने को बेचैन है ,
आज़ादी के खुले आसमान में परवाज़ को बेचैन है , ये एहसास के बादल उसे ना रोक पाएंगे ,
रिश्तो के ये बंधन टूट कर फिर ना जुड़ पाएंगे ,
उसका रहमान -ए- रहीम उसे पुकार रहा ,
सब्र का बांध टूट चुका वो उससे मिलने जा रहा ,
उसे रोकने की नाहक कोशिश न करो ,
उसे सुकूँ पाने दो चैन से उसे रुख़्सत करो ,