रुस्वाई हो जिसमे
रुसवाई हो जिसमें,
क्यों वो बात करें,
वशल ही ना हो मुकद्दर में,
तो क्यों मुलाकात करें,
फूरकत में जीए, फूरकत में मरेंगे,
क्यों फिर दीवानों से हालात करें,
मालूम है जवाब न उम्मीदिें का मिलेगा,
फिर क्यों हम तुमसे सवालात करें,
रोज़ मर मर के जीने से क्या होगा,
“साहिब” क्यों न खत्म हयात करें,