रुपान्तरण
जीवन की संचित ऊर्जा
अपने सूक्ष्मतम रूप में
अणु से परमाणु तक
क्रोध से प्रेम तक
खाद से पुष्प तक
कण से पर्वत तक
नित्य परिवर्तित हो रही है,
रूपांतरित हो रही है
और आज का मानव
मशीन से इतर
तकनीकी से अलग
किसी भी परिवर्तन को
स्वीकार नही करता…
सहजता से
क्यों?