रुख इधर का भी कभी किया करो।
फिक्र एक दूजे की किया करो
दूर से ही सही नजदीकियां किया करो।
मजबूरी का आलम तो बहाना है
जमीं पर यादों की कभी सफर किया करो।
बेमौसम बरसात भी तो होती है
रुख इधर का तुम भी कभी किया करो।
श्याह रात है और चाह उदास
कभी दबे पाँव आने का तोहफा दिया करो।
अच्छा नहीं होता हर दम संजीदा रहना
मीठे से अंदाज में कुछ शरारत किया करो।
गोविन्द मोदी, जयपुर।
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