Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jul 2020 · 2 min read

रुका हुआ पंखा

रुका हुआ पंखा / बलराम अग्रवाल
पापा बड़े उद्विग्न दिखाई दे रहे थे कुछ दिनों से। कमरे में झाँककर देखते और चले जाते। उस उद्विग्नता में ही एक दिन पास आ खड़े हुए; पूछा, “बेटी, ये पंखा क्यों बन्द किया हुआ है?”
“ठंड के मौसम में कौन पंखा चलाता है पापा!” मैंने जवाब दिया।
“हाँ, लेकिन मच्छर वगैरा से तो बचाव करता ही है।” वह बोले, “ऐसा कर, दो नम्बर पर चला लिया कर।”
“उन्हीं की वजह से पूरी बाँहों की कमीज, टखनों तक सलवार और पैरों में मौजे पहनकर पढ़ने बैठती हूँ।” मैंने समझदारी जताते हुए कहा, “ये देखो।”
“फिर भी… ” पंखा ऑन कर रेग्युलेटर को दो नम्बर पर घुमाकर बोले, “मन्दा-मन्दा चलते रहना चाहिए।”
उस दिन से कन्धों पर शॉल भी डालकर बैठने लगी।
आज आए तो बड़े खुश थे। बोले, “तेरे कमरे के लिए स्प्लिट एसी खरीद लिया है। कुछ ही देर में फिट कर जाएगा मैकेनिक। पंखे से छुट्टी।”
“ऑफ सीजन रिबेट मिल गयी क्या?” मैंने मुस्कराकर सवाल किया।
“जरूरत हो तो क्या ऑफ सीजन और क्या रिबेट बेटी।” उन्होंने कहा, “खरीद लाया, बस।”
उसी समय एसी की डिलीवरी आ गयी और साथ में मैकेनिक भी। दो-तीन घंटे की कवायद के बाद कमरे की दीवार पर एसी फिट हो गया।
“एक काम और कर दे मकबूल!” पापा मैकेनिक से बोले, “सीलिंग फैन को उतारकर बाहर रख दे।”
“उसे लगा रहने दो सा’ब।” मकबूल ने कहा, “एसी के बावजूद इसकी जरूरत पड़ जाती है।”
“जरूरत को मार गोली यार!” पापा उससे बोले, “इसे हटाने के लिए ही तो एसी खरीदा है।”
“क्यों?”
“आजकल के बच्चों का कुछ भरोसा नहीं है… पता नहीं किस बात पर… !” कहते-कहते उनकी नजर मेरी नजर से टकरा गयी।
तो यह बात थी!!!—यह सुन, एकाएक ही मेरी आँखें उन्हें देखते हुए डबडबा आईं।
“जिगर का टुकड़ा है तू।” तुरन्त ही खींचकर मुझे सीने से लगा वह एकदम सुबक-से पड़े, “चारों ओर से आने वाली गरम हवाओं ने भीतर तक झुलसाकर रख दिया है बेटी। रुका हुआ पंखा बहुत डराने लगा था… ”
मकबूल ने उनसे अब कुछ भी पूछने-कहने की जरूरत नहीं समझी। अपने औजार समेटे और बाहर निकल गया।

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 1239 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
आज का बदलता माहौल
आज का बदलता माहौल
Naresh Sagar
मेरी ख़्वाहिश वफ़ा सुन ले,
मेरी ख़्वाहिश वफ़ा सुन ले,
अनिल अहिरवार"अबीर"
Scattered existence,
Scattered existence,
पूर्वार्थ
घाव
घाव
अखिलेश 'अखिल'
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Dr Archana Gupta
यादें
यादें
Johnny Ahmed 'क़ैस'
आंधियों से हम बुझे तो क्या दिए रोशन करेंगे
आंधियों से हम बुझे तो क्या दिए रोशन करेंगे
कवि दीपक बवेजा
किसी भी काम में आपको मुश्किल तब लगती है जब आप किसी समस्या का
किसी भी काम में आपको मुश्किल तब लगती है जब आप किसी समस्या का
Rj Anand Prajapati
** सुख और दुख **
** सुख और दुख **
Swami Ganganiya
झंझा झकोरती पेड़ों को, पर्वत निष्कम्प बने रहते।
झंझा झकोरती पेड़ों को, पर्वत निष्कम्प बने रहते।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
विधवा
विधवा
Acharya Rama Nand Mandal
तुम्हारा दीद हो जाए,तो मेरी ईद हो जाए
तुम्हारा दीद हो जाए,तो मेरी ईद हो जाए
Ram Krishan Rastogi
कलम
कलम
शायर देव मेहरानियां
रोबोटिक्स -एक समीक्षा
रोबोटिक्स -एक समीक्षा
Shyam Sundar Subramanian
नैह
नैह
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
2874.*पूर्णिका*
2874.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Life is a rain
Life is a rain
Ankita Patel
अगन में तपा करके कुंदन बनाया,
अगन में तपा करके कुंदन बनाया,
Satish Srijan
मैं फूलों पे लिखती हूँ,तारों पे लिखती हूँ
मैं फूलों पे लिखती हूँ,तारों पे लिखती हूँ
Shweta Soni
नज़्म/कविता - जब अहसासों में तू बसी है
नज़्म/कविता - जब अहसासों में तू बसी है
अनिल कुमार
आप दिलकश जो है
आप दिलकश जो है
gurudeenverma198
संगति
संगति
Buddha Prakash
*गाता गाथा राम की, तीर्थ अयोध्या धाम (कुंडलिया)*
*गाता गाथा राम की, तीर्थ अयोध्या धाम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
जल से निकली जलपरी
जल से निकली जलपरी
लक्ष्मी सिंह
जीवन के रंग
जीवन के रंग
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राष्ट्र निर्माण को जीवन का उद्देश्य बनाया था
राष्ट्र निर्माण को जीवन का उद्देश्य बनाया था
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
शीर्षक - खामोशी
शीर्षक - खामोशी
Neeraj Agarwal
" मैं कांटा हूँ, तूं है गुलाब सा "
Aarti sirsat
"गुज़रते वक़्त के कांधे पे, अपना हाथ रक्खा था।
*Author प्रणय प्रभात*
मां सिद्धिदात्री
मां सिद्धिदात्री
Mukesh Kumar Sonkar
Loading...