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4 Apr 2023 · 1 min read

“गुज़रते वक़्त के कांधे पे, अपना हाथ रक्खा था।

“गुज़रते वक़्त के कांधे पे, अपना हाथ रक्खा था।
क़सम से तब भी तन्हा थे, क़सम से अब भी तन्हा हैं।।”

★प्रणय प्रभात★

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