रिश्ते
रिश्तों की गरमाहट मिट गई, लाज हया सब खत्म हो गई।
क्यों भाई से भाई लड़ रहा, क्यों बहन बहन से अलग हो गई।।
मात पिता ने दी थी शिक्षा, मिलजुलकर ही रहना सबको।
सीख धरी की धरी रह गई, सुनने की क्षमता खत्म गईं।।
मात पिता के निर्देशों से,पढ़ लिख कर सब ज्ञानी हो गए।
सब साधन सम्पन्न हो गए,और सबकी राहें अलग हो गईं।।
कैसा गैप ये जेनरेशन का,माँ की सीख सब खत्म हो गई।
माँ बेटे की सोच मिली ना,और बेटी तो खुद पैरों पर खड़ी हो गई।।
कैसा है यह दौर आज का,कैसी गलतफैमियाँ हो गईं ।
साथ ना रहता भाई भाई के,बहना भी ससुराल में खो गई।।
पहले जब सब संग रहते थे,माफ सभी वो कर देते थे।
सब कुछ हम सुन भी लेते,और कुछ भी किसी को कह देते थे।।
माफ करो और आगे बढ़ जा,यही हमें बस करना है।
अपनो को अपना मानें तो, माफ उसे ही करना है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी