रिश्ते नाते दूर रखो
रिश्ते नाते दूर रखो
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रिश्तों की आना- कानी ने
घर कितने ही तोड़ दिए
इस उलझन में उलझके जाने
कितनो ने घर छोड़ दिए
बात- बात पै तुनक मिजाजी
बात बात पै गाली है
सच्ची बातें शूल लगें हैं
झूठी बात पै ताली है
होकर तंग इन हालातों से
रूख कितनों ने मोड़ लिए
सांझा चूल्हा तन्हा रह गया
आंगन खड़ी हो गई दीवार
भाई- भाई का दुश्मन हो गया
बाप बेटे का मर गया प्यार
सांस बहूं की लड़ाई ने देखो
लाज-शर्म झकझोड दिए
अपनें लेकर थाने पहुंचे
अपने लेकर जेल गए
अपनों ने दुश्मन लड़वाए
अपनों ने जी भर टूटवाए
अपनों ने ही ज़हर खिलाया
अपनों ने सर फोड़ दिए
अपना समझके अपनों को
कभी भूल ना तुम करना
अपनों से रहना बचकर
ज्यादा मेल ना तुम करना
घर घर छुप बैठे हैं विभिषण
रावण जैसे तोड़ दिए
डर लगता है अब रिश्तों से
इनको हमसे दूर रखो
इनसे कह दो पास ना आए
ख़ुद को खूब मगरूर रखो
बहुत सताया हमको “सागर”
हमने भी सब छोड़ दिए।।
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जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
20/06/21
रात्रि….11.24