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18 Jul 2021 · 1 min read

रिमझिम

रिमझिम रिमझिम बदरा बरसे
सावन के पड़ गये है झूले
खेत खलिहानों में हरियाली छाई
नाच उठे तटिनी के कूले
अवनि पहने धानी चूनरी
मद मस्त हो अम्बर तक झूली
खेतों में अमराई छायी
बरखा अपने संग सावन लाई

तन झुलसे और मन झुलसे
अंग अंग में उमसता आए
पड़े जब रिमझिम नीर फुहारें
बरसे जब घनघोर घोर घटायें
नील नभ में इन्द्रधनुष सजे
जन मन का अंग अंग खिले
चेहरों पर तरूणाई आयी
बदरा अपने संग सावन लाई

जब देखा मैंने पगलाई बूँदों को
मन मेरा चपला चंचल हो गया
छुआ जब उन बारिश बूँदों को
मन मेरा भीगा भीगा मचल गया
लोटा बचपन पूर हुआ मेरा सपन
सौधी मिट्टी की खूशबू समाई
बरखा अपने संग सावन लाई

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