राहों में खड़ी तेरी नूर
**** राहों में खड़ी तेरी नूर ****
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हाथों पर मेंहदी ,मांग में भर सिंदूर
राहों में खड़ी है ,हमसफर तेरी नूर
दीवानों सी हालत हैं दीवानगी में
मन में समाए हो तुम मेरे कोहिनूर
प्रेमरोग में मीरा सी जोगन बनी हूँ
मेरे मन का जोगी है अखियों से दूर
धड़कनें मेरी कहीं ये रूक ना जाएं
बाँहों में समा लो भटक रही हैं हूर
तुम बिना सूने पड़े यहाँ घर के द्वार
लौटकर भी चले आओ मेरे गरूर
निगाहों को रहता है तेरा इन्तजार
ठहर गई मेरी आँखें हो कर मजबूर
भंवर में फंसी हैं प्रिय नैया हमारी
साहिल पर लगा दो मुझे मेरे हुजूर
सुखविंद्र ही है मेरे आँखों का तारा
प्यासी रूह में छाया हैं तेरा सरूर
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)