#ग़ज़ल-12
जीवन है छोटा-सा काम बहुत हैं
इक वस्तु यहाँ होते दाम बहुत हैं/1
केतन पातों-सा बाँट दिया है मन
जाति यहाँ मानव पर नाम बहुत हैं/2
ढोंगी को देता हूँ दोष कभी तो
कहते हैं जा तुझसे आम बहुत हैं/3
राधा हारी है निज हृदय यहाँ पर
फिर भी दीवाने राधा-गुलाम बहुत हैं/4
मन मैला मत कर तू भूल गया गर
सुबह भूले घर लौटे शाम बहुत हैं/5
तुम पग-पग पर रावण देख रहे हो
मैं देखूँ हर पग पर राम बहुत हैं/6
“प्रीतम”चलना आँखें खोल सदा ही
राहे-पत्थर के पैगाम बहुत हैं/7
-आर.एस.प्रीतम