राहुल की अंतरात्मा
पापा !
तथागत की संज्ञा से आप
आज तक मुक्त न हो सके
यही नहीं, संभवत:
आनेवाली पीढ़ी भी , शायद
आपको यही इसी नाम से जाने ।
पापा !
आपको तो आमंत्रण मिला था
नीति से, प्रकृति से
जीवन का उद्धार करने
प्राणियों का परोपकार करने
उनकी पीड़ा हरने
न कि किसी को दुख देने ।
धराधाम ने आपका अभिषेक किया था
जब आपको ज्ञान मिला था
पीपल की छांव में
बिहार के गया गांव में
बुद्ध बनकर आए, फिर चल दिए
मम्मी का हाथ पकड़े थे
आप मेरे भी हाथ पकड़ मुझे घुमाते
मैं भी आपके हाथ पकड़ आपको घुमाते
पक्षी को बचाने देवव्रत से लड़ गए थे
मम्मी और मैं आपके बिना रह गए थे।
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@मौलिक रचना घनश्याम पोद्दार
मुंगेर