राहगीर
जिस राह पर चित
शांत लगे।
उस पर चलते रहना
बस रुकना मत।
वक्त तन्हा हुआ तो
क्या है?
कल खुशी के पल
भी होंगे।
नही होगा तो सिर्फ
वो पल।
जो बदनाम हुआ सिर्फ
तुम्हे कुछ बनाने के लिए।
पेड़ के पत्ते सदा नही
रहते है शाखो पर।
टूट जाना कमजोरी ही नहीं
नए समय का आगाज भी होता है।
हवाओं को भी रुख
बदलना पड़ता है।
तब जाकर बसंत, बहार
शिशिर का आगमन होता है
बदलना फितरत नहीं बल्कि
समय की मजबूरी है।
वरना शाखों से टूटकर यू
गिरता कौन है?