रास्ते और मुसाफिर
कई साल भटका हूं तो सही रास्ते मिले,
कई लोग मुसाफिर ही रहे, नहीं मंजिलें मिली।
गम और गुरबतों के कई काफिले मिले,
चुटकी भर मुस्कुराहट की, कई तन्हाईयां मिली।
कुछ लोग जो कह रहे थे मैं टूट जाऊंगा,
मुश्किलों और मेहनतों से रूठ जाऊंगा।
डूबता देख मुझको शायद सुकून मिले,
अफसोस के उनके हिस्से रुसवाइयां मिली।
पत्थर नहीं था मैं पर कठोर हो गया,
कुछ और था कभी, अब कुछ और हो गया।
रिश्तों की चमक दूर से दिखती जरूर थी,
नजदीकियों पर हर शख्स दूर हो गया।
जिंदगी मंजिलों की नही, रास्तों की कहानी है,
गंतव्य और इति के फासले की रवानी है।
मौत रोक ले तो गति थम जाएगी मेरी,
उस पार का सफर नया होगा, उस पार नई जवानी है।
अब मंजिलों की चाह नहीं, ना चाहता हूं कि वो मिले,
अब सफर में रहूं सदा, चल पड़ू जो नई राह मिली।
कई साल भटका हूं तो सही रास्ते मिले,
कई लोग मुसाफिर ही रहे, नहीं मंजिलें मिली।