रास्ता तुमने दिखाया…
जब थका तन हारता मन,
हौसला तब-तब बढ़ाया।
लक्ष्य पर नित बढ़ रही मैं,
रास्ता तुमने दिखाया।
बेबसी के उस प्रहर में,
ढा रहा था जग कहर जब।
सुर सधी आवाज भी ये,
हो रही थी बेअसर जब।
हर तरफ वीरानगी थी,
घिर रही थी दुख-भँवर में,
तब बढ़ाकर हाथ अपना,
पार तुमने ही लगाया।
एक कोने में पड़ी थी,
थे सभी सुख-साज दुर्लभ।
पंख फैला कल्पना के,
छू रही हूँ आज मैं नभ।
जब जहाँ भी मैं रही हूँ,
तुम सदा मन में रहे हो।
मैं भ्रमित थी राह में जब,
बढ़ सुपथ तुमने सुझाया।
क्या गलत है क्या सही है,
कुछ नहीं मुझको पता था।
कौन था बस एक तू, जो-
हाल मेरा जानता था।
जो मिला तुमसे मिला है,
सच कहूँ ये आज खुलकर,
सब तुम्हारी ही बदौलत,
आज कुछ जो कर दिखाया।
लक्ष्य पर नित बढ़ रही मैं,
रास्ता तुमने दिखाया।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)