रायबरेली में आज तूफान – जमाती
तेरी एक गलती भारी पड़ी है ,
मेरे शहर में भी आफत खड़ी है ।
जहां फूल गुलशन के फिर से महकते ,
उन्हीं गलियों में फिर जंजीरें जड़ी हैं ।
धूमिल हुई सारी कोशिशें सभी की ,
ना जाने नाटक की कैसी कड़ी है ।
जाहिल ही होगा वो पूरा का पूरा ,
जिससे हुई ये आफत बड़ी है ।
तेरी इस इबादत को क्या समझे ‘सायक’.
जो ये भी ना समझे ये दुख की घड़ी है ।
– जय श्री सैनी ‘सायक’