राम मंदिर निर्माण सपना साकार
भारतवासियों की धार्मिक भावना
और बौद्धिक क्षमता को कुंद करने की
कुत्सित दूरगामी सोच की राह पर चलते हुए
भारत आए मुग़ल आतताई शासकों ने,
अत्याचार मिश्रित कुटलिता से
हमारी विरासत पर प्रहार किया,
अनगिनत मन्दिरों, धर्म स्थलों को
अपनी कुटिलता का शिकार बनाया,
ध्वस्त, नष्ट करने का मार्ग अपनाया।
यह सब देख जन मन बेहाल था
सर्वत्र भय ही व्याप्त था,
धार्मिक आध्यात्मिक गतिविधियों पर
कुशासनी अंकुश था,
पूजा पाठ, आस्था और विश्वास पर
जैसे अघोषित पूर्णविराम था।
देश आजाद भले हो चुका था,
पर बहुत कुछ अधूरा अधूरा
खालीपन सा लग रहा था ।
धर्म का विनाश करने का कुचक्र रचने
वाली पाखंडी दुरात्माएं
सत्ता के मद और स्वार्थ में इतने चूर थे
कि नियम कानून की धज्जियाँ उड़ाकर
योजनाबद्ध ढंग से अट्टहास कर रहे थे,
यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ, धर्म-सत्य के साथ
तब न्याय भी लड़खड़ाने लगा था,
वेद पुराण शास्त्रों धार्मिक ग्रंथों पर से
हमारा विश्वास ही डगमगाने लगा था।
पाठ्य पुस्तकों की आड़ में विद्यार्थियों को
सच से दूर करने का कुचक्र चरम की ओर था,
जनमानस के मन मस्तिष्क से खिलवाड़
और नयी पीढ़ी की सोच, विचारधारा को
कुंदकर मिटाने का वातावरण
शातिराना ढंग से तैयार किया जा रहा था,
क्रांतिकारी विचारों और मुखर आवाज को
अनीति से दबाया जा रहा था,
पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को आकर्षक बनाकर परोसने का अभियान चलाया रहा था।
और तो और अब तो ईश्वर के अस्तित्व ही नहीं
उनके निराकार, साकार स्वरूप पर भी
प्रश्न चिन्ह उठाया जाने लगा था,
सनातन संस्कृति, सभ्यता भी जब
करुण पुकार करने लगी थी।
हालात से विचलित जनमानस का विश्वास
हारने, डगमगाने लगा था,
आशंकाओं का वातावरण डरा रहा था।
तब भी एक छोटासमूह या लोग ही सही
अपने प्रभु श्री राम भरोसे ही अडिग थे,
ईश्वर पर भरोसा किए कर्म, धर्म पथ पर चल रहे थे
उम्मीदों का पहाड़ लिए अपने सपने को
साकार रुप में देखने के लिए अड़े थे।
अंततः उनका विश्वास जीत गया
समय का चक्र घूमकर पुनः अपने बिन्दु पर
जब एक बार फिर आ गया,
और तमाम संघर्ष विजय शंखनाद करने लगा।
और अन्ततः विश्वास तब जीत गया
जब वो शुभ समय समाचार लेकर आया।
जिसका सपना हमारे पुरखों पूर्वजों ने देखा था,
जाने कितनी लड़ाईयां लड़ी थी
लाठी, गोली खाई, जेल की काल कोठरी में
जाने कितनी यातनाएं सहकर गुजारी,
जाने कितने दंगा, फसाद हुए
पुलिसिया दमन और मुकदमों का सामना किया
कर्फ्यू की बंदिशें झेलीं, घर परिवार से दूर रहे,
भूखे प्यासे छिपते छिपाते यहां वहां भटकते रहे,
पर अपने प्रभु पर विश्वास बनाए रहे।
इक्कीसवीं शताब्दी का दूसरा दशक आया
समय के बदलाव की करवट से
मानसिकता ,सनातन संस्कृति और
भारतीय सभ्यता के पुनरीक्षण का शुभ विचार
अंकुरित ही नहीं पुष्पित पल्लवित होने लगा।
अगाध श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक अयोध्याधाम
सुर्ख़ियों में एक बार फिर छाने लगा।
राम मन्दिर निर्माण और लम्बी कानूनी लड़ाई पर
जब सुप्रीम निर्णय मंदिर के पक्ष में आया,
तब करोड़ों राम भक्तों, साधु संतों
महात्माओं, धर्माचार्यों का ही नहीं
अगणित जनमानस का मन बहुत हर्षाया।
फिर पांच अगस्त दो हजार बीस को जब
अन्यान्य साधु, सन्तों, महात्माओं,
धर्माचार्यों और मठाधीशों की उपस्थिति में
मन्त्रोच्चार के बीच उठते पवित्र धुएं के बीच
जब पावन अयोध्याधाम में गर्भगृह के जन्म स्थान पर
श्री राम मन्दिर की आधारशिला रखी गई
तब हम सबके सपने की आस और बलवती हो गई।
भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी
मजबूत रामभक्त के रूप में नजर आये,
योगी आदित्यनाथ ने अपने कर्तव्य बखूबी निभाए
और अब जब अयोध्या के विराट मन्दिर का
प्रथम चरण का कार्य पूर्ण हो गया है,
22 जनवरी सन् 2024 को नववर्ष में
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा शुभ मूहूर्त में हो गया है।
23 जनवरी से मन्दिर के द्वार
आमजन के दर्शनार्थ खुलने लगे हैं
तब हमारे आपके प्रभु श्रीराम के
मंदिर निर्माण के सपने साकार हो गये हैं।
राम भक्तों के भाग्य जागृति हो गये हैं
हमारे जन्मों के सारे पाप मिटने की आस जगने लगे हैं,
क्योंकि अब राम जी अपने धाम में मुस्कराने लगे हैं
हम सब रामराज्य की ओर जाने के
एक बार फिर सपने सजाने लगे हैं
क्योंकि अब राम जी अपने धाम अपने सिंहासन पर
लंबी प्रतीक्षा के बाद विराज मान हो गये हैं,
और बिना किसी बाधा के हमें दर्शन देकर
अपनी कृपा बरसाने लगे हैं,
तब हम आप सब रामधुन गाने लगे हैं
राम जी को सुनाकर रिझाने लगे हैं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश