राम चले वनवास
राम चले वनवास, नाव मेरी धीरे धीरे चलो,
मन में समय बिता, हर एक पल बिताओ।
बसेरे का है यह आदर्श, स्नेह और सद्भाव,
धीरे धीरे विदेशी संस्कृति को हम भुलाओ।
प्रकृति में धीरे धीरे भरोसा जमाओ,
वृक्षों के आंचल में हम पलक झपकाओ।
प्रेम का उत्साह अपार, एक दूजे से बांधो,
वचनों के पूल में मस्ती से इकट्ठा पैराबंद बांधो।
वनवासी बनकर मन को शांति देना,
विचारों के उन्माद से दूरी बढ़ाना।
जीवन का हर तना-मना भरती रहो,
कठिनाईयों को धीरे धीरे समझो।
राम चले वनवास, नाव मेरी धीरे धीरे चलो,
सच्ची प्रेम की कथा, यहां बढ़ाते चलो।
कार्तिक नितिन शर्मा