राम और रावण
अगर राम अपनी जगह सही थे, तो रावण भी गलत न था,
नियति के जाल में दोनों कुछ फंसे ही इस तरह थे,
अगर रावण को अभिमान ने घेरा तो राम को भी मर्यादा ने घेरा,
फिर भी दोष सिर्फ इक को देना बोलो कहां का इंसाफ है,
चारो वेदों का ज्ञाता और हर काल का ज्ञान था जिसे,
तो बताओ क्या अनभिज्ञ रहा होगा वो राम हनुमान में छिपी शक्ति से,
जिस मर्यादा पुरुषोत्तम को पूज रहा है यह जहां आज तक,
उस राम को भी सीता ने ही बनाया था,
देकर अग्निपरीक्षा और काटकर वन में अपना जीवन,
उसने ही राजा राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाया था
भूल गए सब उस सीता को राम सबको याद रहा,
रावण की तारीफ करने वालों को गुण उसका इक भी याद न रहा,
लोगों के कहने पर जिसने छोड़ा सीता को उसका सबने पूजन किया,
बहन के सम्मान में बख्शा न जिसने खुदा को उसको सबने दुष्ट का नाम दिया,
माना राम खुदा है तो रावण भी गलत पूर्णत न था,
किया दोनों ने कर्म वही जिसे नियति ने बखूबी रचाया था