*रामपुर रियासत को कायम रखने का अंतिम प्रयास और रामभरोसे लाल सर्राफ का ऐतिहासिक विरोध*
रामपुर रियासत को कायम रखने का अंतिम प्रयास और रामभरोसे लाल सर्राफ का ऐतिहासिक विरोध
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17 अगस्त 1948 को सुबह 11 बजे हामिद मंजिल ,किला के खूबसूरत दरबार हाल में रामपुर के शासक नवाब रजा अली खाँ ने रामपुर रियासत की नवगठित विधानसभा का उद्घाटन किया । जी हाँ ! 17 अगस्त 1948 अर्थात आजादी के एक साल बाद ।
इस अवसर पर उन्होंने अपने भाषण में कहा “ 17 अगस्त के दिन को हम और आने वाली नस्लें रामपुर के इतिहास में यादगार दिन ख्याल करेंगी कि उस दिन रामपुर की प्रजा को अपने शासक के नेतृत्व में रियासत के भविष्य की जिम्मेदारी सौंपी गई । आज प्रजा पूर्ण उत्तरदाई शासन के आलीशान महल के द्वार में दाखिल हुई है। “
नवाब साहब के उपरोक्त भाषण के बाद विधानसभा के स्पीकर असलम खाँ एडवोकेट ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, गृहमंत्री सरदार पटेल आदि के बधाई संदेश पढ़कर सुनाए।
तदुपरांत नवाब साहब तो दरबार हाल से चले गए लेकिन उसके बाद रियासत के शिक्षा मंत्री देवकीनंदन ने एक प्रस्ताव विधानसभा में प्रस्तुत किया जिसका महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार है :-“ हमारी आरजू है कि हम …..इंडियन यूनियन की गवर्नमेंट के समर्थन के साथ- साथ हम अपनी रियासत को कायम और बरकरार रख सकें और अगर इसके लिए हमें किसी ईसार (बलिदान) की जरूरत हो तो हम ऐलान करते हैं कि हम उस ईसार के लिए तैयार हैं। खुदा हमें इस इरादे पर कायम रखे और उसकी तक्मील(सिद्धि) में हमारी मदद करे “।
विधानसभा के सदस्य मौलवी अजीज अहमद खाँ और जमुनादीन ने प्रस्ताव के समर्थन में भाषण दिया । अब बारी विधानसभा सदस्य रामभरोसे लाल सर्राफ द्वारा भाषण देने की थी ।
रामभरोसे लाल सर्राफ ने प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि प्रस्ताव जनहित में नहीं है । देश की राजनीतिक स्थिति और समय की माँग के विपरीत यह प्रस्ताव कागज का टुकड़ा मात्र है । रामभरोसे लाल सर्राफ द्वारा प्रस्ताव का विरोध करने के कारण दरबार हाल में खलबली मच गई। स्पीकर असलम खाँ एडवोकेट ने उन्हें टोकते हुए कहा कि आप विषय से बाहर न जाएँ। लेकिन राम भरोसे लाल सर्राफ ने विषय पर प्रस्ताव के विरोध में दो टूक शब्दों में अपना मत व्यक्त किया। रामभरोसे लाल सर्राफ का विरोध मामूली नहीं था । उस समय नवाबी शासन चल रहा था। ऐसे में रियासत को पूरी तरह समाप्त करने के संबंध में अपने विचार किले के अंदर हामिद मंजिल के भव्य राज दरबार में कहना कम साहस की बात नहीं थी ।
बाद में राम भरोसे लाल सर्राफ ने अतीत के घटना चक्र का स्मरण करते हुए बताया कि “एक साधारण कार्यकर्ता की हैसियत से व्यक्तिगत रूप में इसका मुझे हार्दिक संतोष है कि प्रभु कृपा ,साथियों की बहुमूल्य प्रेरणा और सहयोग से उस कठिन समय में सही बात कह कर मैं अपने राष्ट्रीय विचार और भावना की रक्षा कर सका।”
रामपुर के राजनीतिक वातावरण में आजादी के बाद रियासत को किसी तरह बचा पाना नवाब साहब की पहली प्राथमिकता थी। इसके लिए लोकतंत्र की व्यवस्था को नवाबी शासन में प्रवेश दिलाने का दिखावा किया गया । इस हेतु रामपुर में रियासती विधानसभा के गठन का कार्य 1948 में शुरू हुआ । बाकायदा चुनाव हुए और वोट पड़े। रामपुर में कांग्रेस पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के नाम से काम करती थी। नेशनल कान्फ्रेंस ने इस दिखावे को नामंजूर कर दिया और रियासत की पूरी तरह समाप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया। उस समय ओमकार सरन विद्यार्थी को इनकम टैक्स ऑफिसर का पद प्रदान करने का प्रलोभन दिया गया । गजट भी हो गया था।लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार करते हुए अपना विरोध जारी रखा। नेशनल कान्फ्रेंस रियासती विधानसभा के चुनाव से अलग रही, इस कारण उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं मोहम्मद हिफजुर्रहमान, मोहनलाल गौतम और सैयद मुजफ्फर हसन साहब को रियासती सरकार ने विचार-विमर्श करके रामपुर बुलवाया और इन नेताओं ने नेशनल कान्फ्रेंस को सलाह दी कि वह विधानसभा में अपने कुछ प्रतिनिधियों को भेजने के लिए राजी हो जाए। राम भरोसे लाल सर्राफ तथा कुछ अन्य सदस्यों ने इसका विरोध किया। लेकिन फिर भी क्योंकि उच्च नेतृत्व का दबाव था , अतः रामभरोसे लाल सर्राफ सहित कुल एक दर्जन से ज्यादा प्रतिनिधि विधानसभा में नामजद किए जाने के लिए राजी हो गए ।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि 17 अगस्त 1948 को रियासत को कायम रखने वाला प्रस्ताव बिना किसी सूचना के एकाएक लाया गया था। इस मुद्दे पर श्री रामभरोसे लाल सर्राफ ने नेशनल कांफ्रेंस के विधानसभा सदस्यों की पार्टी मीटिंग के अतीत का स्मरण करते हुए कहा था :-“बिना पूर्व सूचना के अकस्मात ऐसा नाजुक प्रस्ताव आने पर अचंभा होना स्वाभाविक था। मैंने स्पष्ट विरोध किया और कहा कि इस पर विचार करने के लिए समय दिया जाना चाहिए था । वैसे भी अपने स्वरूप में प्रस्ताव अनुचित है । जबकि कहा यह जा रहा है कि असेंबली के उद्घाटन के अवसर पर इसे पारित कर दिया जाए। मेरा समर्थन केवल श्री नंदन प्रसाद जी ने जो अब दिल्ली में हैं, किया ।अन्य ने विरोध किया या मौन रहे । इस पर विडंबना यह कि पार्टी ने यह भी निर्णय लिया कि असेंबली के प्रस्ताव का मैं समर्थन करूंगा ।
पार्टी मीटिंग की समाप्ति पर राजनीतिक व्यक्तित्व के धनी रियासत के मुख्यमंत्री श्री बशीर हुसैन जैदी आए। उनसे भी मैंने कहा कि इस अनीतियुक्त प्रस्ताव से व्यर्थ ही विवाद छिड़ जाएगा । श्री जैदी ने केवल यही कहा कि हाँ ठीक है ,यह सब आप लोग देखें और निर्णय लें।
असेंबली के बाहर वाले साथियों के साथ हम कई लोग मुरादाबाद में उपस्थित मान्यवर आचार्य जुगल किशोर जी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पास पहुँचे किंतु स्पष्ट दिशा-निर्देश वह नहीं दे सके ।उनकी कठिनाई यह थी कि पार्टी के निर्णय के बाद प्रस्ताव के विरोध में बोलने से अनुशासनहीनता का प्रश्न था और समर्थन करने को कहना राष्ट्र – नीति के विरुद्ध होता। अतः हमारे विवेक पर उन्होंने सब छोड़ दिया। साथियों ने निर्णय किया कि मुझे प्रस्ताव का विरोध करके पार्टी की अनुशासनात्मक कार्यवाही का सामना करना चाहिए।”
उसके बाद प्रस्ताव के विरोध में राम भरोसे लाल सर्राफ ने दरबार हाल में जोरदार भाषण दिया। लेकिन आपके ही शब्दों में “मेरे विरुद्ध अनुशासन की कार्यवाही करने का साहस पार्टी नहीं जुटा सकी ।”
रामपुर स्टेट गजट के अनुसार प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार होना बताया गया है। लेकिन रामपुर का इतिहास (लेखक शौकत अली खाँ एडवोकेट )पुस्तक पृष्ठ 408 में यह दर्ज किया हुआ है कि रामभरोसे लाल सर्राफ ने रामपुर के रत्न (लेखक रवि प्रकाश) प्रष्ठ 53 में प्रस्ताव का विरोध करने का दावा किया है ।
अतः तात्पर्य यह है कि 17 अगस्त 1948 को रामपुर रियासत को कायम रखने का जो प्रस्ताव रियासती विधानसभा के पटल पर दरबार हाल में रखा गया था , उसे सर्वसम्मति से समर्थन नहीं मिल पाया बल्कि विधान सभा में उपस्थित रामभरोसे लाल सर्राफ ने प्रस्ताव का विरोध किया था।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451