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11 Aug 2020 · 1 min read

राधा नाम नेह कौ

ब्रज वनिताओं के तन छरहरे चंचल नैन मदभरे,
नेह रस मन भरे छल फरेब नहि मानती।
प्रेम कौ व्यौहार करें कबहू नहिं रार करें,
प्यार और द्वेष कौ अंतर खूब जानतीं।
राधा नाम नेह कौ साक्षात रूप प्रेम कौ,
प्रेम को ही परम ब्रह्म अरु अभीष्ट जानतीं।
थे आराध्य राधा और गोपियों के श्री कृष्ण,
प्रेम कौ प्रतिरूप जान अपनों ईष्ट मानतीं।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Language: Hindi
6 Comments · 222 Views
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