रात की महफ़िल
3-शीर्षक – रात की महफ़िल
फिर सज गई रात की महफ़िल
फिर हो गया तन्हाई का जमावड़ा
एक तन्हा शमा रही जलती
एक चिराग आँसू रहा बहाता
स्याह सी चादर पर सितारें टँके
गुमनामी का किस्सा चलता रहा
हवा भी बैरन हुई छुपके चलती रही
लाखों अफ़साने ज़हन में उतरते रहे
इस मंज़र का खंज़र चुभता रहा
कितने किस्से बनते बिगड़ते रहे
थमने लगा कोरों पर सागर
तो लगा महफ़िल उजड़ने लगी
एक और रात की महफ़िल
फिर दम भरने लगी।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )