रात का दामन
रात के दामन में, तारे बहुत हैं
जगमगाते लगते प्यारे बहुत हैं
बहुत रुलाती है बहुत हंसती है
रंगीली रात के, नज़ारे बहुत हैं
ये दवा भी बनी गवाह भी बनी
उलझे इस रात में बेचारे बहुत है
‘आजाद’ चक्कर में मत आना
इस काली रात ने, मारे बहुत हैं
– कवि आजाद मंडौरी