राज खुशी का
यह देखो इस पौधे को,
कितना मुस्करा रही है,
मां के समीप रह कर,
बहुत इतरा रही है।
” क्या राज़ तुम्हारी प्रसन्नता का ?
तुम दुनिया वाले, ना समझ पाओगे”
खुदा ने बुद्धि दिये दान में तुम्हें,
कर दिए, पैरों दिये,
क्या दिए थे कत्ल करने को?
अब मुक सा खड़ा क्यों?
क्या जबाब बनता नहीं?
मानव हो कुछ मानवता सीख लो।
अपने मां के समीप रहकर,
कुछ इतरा लिया करो तुम भी,
“मेरी मां चिढ़ती रहती हर पल,
पास रहना उसके बड़ी मुश्किल है ”
जो बंदा अपने मां का नहीं ,
वह होगा क्या किसी ओर का??
मेरी खुशी की राज मेरी मां है
और,
मैं प्रसन्न अपने माता के गोद में,
खेलता हूं कुदता हु और
हर घड़ी प्रसन्न रहता हूं।