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2 Dec 2023 · 1 min read

राज्य अभिषेक है, मृत्यु भोज

सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’’
अर्थात्
“जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो,
खाने वाले का मन प्रसन्न हो,
तभी भोजन करना चाहिए।”

अन्धे राह चलते हैं, बेहरे राग संजाते है।
भेड़ चाल सोचकर, सब चलते जाते हैं।
पूर्वजों के रीति रिवाजों को आँख दिखाते हैं।
अपने हाथों अपने पाव कुल्हाड़ी चलाते हैं।

भोजन जैसी व्यवस्था पर भी अंकुश लगाते हैं।
मन के भरे मेल से तर्क अपने अपने लगाते हैं।
क्या जन्म, प्रण, मरण को रोक कोई पाया है?
फिर कैसे भोजन को मृत्यु भोज बताया है।

भोजन व्यवस्था को व्यर्थ प्रलाप बताते हों।
कुरीतियों का ज्ञान हमें अपना संजाते हों।
समाज को नये युग का आईना दिखाते हों।
विवाह मे लाखों करोड़ो के खर्चे उठाते हों।

पूर्वजों के रिवाजो को तुम समझ नहीं पायें हों।
केवल हर और फालतू हल्ला मचाते आये हों।
मृत्यु भोज नहीं यहाँ राज्य तिलक करवाते हैं।
अपने पूर्वजसंपत्ति का राजा तुम को बनाते हैं।

अपने समाज में एक नई पहचान दिलाते हैं।
परिजन संग परिवार के सब मिलने आते हैं।
आशीष देकर सामाजिक सम्मान दिलाते हैं।
हम भी राज्य अभिषेक मे भोजन करवाते हैं।

बुजर्गो की मिली सम्पति का कुछ दान करते हैं।
अपने परिवार, समाज में धर्मदान भिजवाते है।
हम गाव, रिश्तें, दारों के लिए भोजन बनवाते है।
सब को खुशी खुशी पकवानों से भोग लगवाते है।

लीलाधर चौबिसा (अनिल)
चित्तौड़गढ़ 9829246588

Language: Hindi
225 Views
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