राजनीति
कैसी है ये राजनीति हम तो समझ ना पाए,
जो मुद्दे विपक्ष में उठाएँ, कुर्सी मिलते ही भूल जाएँ।
चुनावों से पहले ये नेता ,घूमते हैं हर घर और बार,
जीत के आते ही ये नेता मुड़कर देखें ना एक भी द्वार।
कैसी है ये राजनीति………।
तरह तरह के सपने दिखा कर, वोटर को हैं खूब लुभाते,
बेचारे वोटर भी देखो, फिर से जुमलों में आ जाते ।
कैसी है ये राजनीति……….।
सपने तो नेता भी संजोते, कुछ कर गुजरने को तत्पर होते
मगर देखो बनते ही राजनेता, कुर्सी बचे ये तिकड़म लगाते हैं नेता।
कैसी है ये राजनीति हम तो समझ ना पाए,
जो मुद्दे विपक्ष में उठाएँ कुर्सी मिलते ही भूल जाएँ।
द्वारा रचित…. रजनीश गोयल
रोहिणी…. दिल्ली