राजकुमारी
इक राजकुमारी से मुझे प्यार हुआ था
महसूस-ए-मोहब्बत सर-ए-दरबार हुआ था
मैं इश्क़ में दिल अपना कभी हारा नहीं था
लाचार-ए-मोहब्बत मैं उसी बार हुआ था
थी रात अमावस की वो थी रैन अंधेरी
जब मुझको मेरे चांद का दीदार हुआ था
दिल मेरा नदी थी कोई जो सूख चुकी थी
पर देख उसे दिल मेरा मल्हार हुआ था
मैं उसकी तरफ़ बढ़के ज़रा बात भी करता
पर सोच के ये बात मैं लाचार हुआ था
महलों में पली थी वो हसीं राजकुमारी
आते ही मुझे याद मैं बेज़ार हुआ था
वो आई मेरे पीछे मुझे देख के बोली
‘पहली ही नज़र में मुझे भी प्यार हुआ था’
बाहों में उसे भरके भुलाया ये ज़माना
मुझको लगा सपना मेरा साकार हुआ था
सोचा कि उसे चूम के ख़ुदकों दू बधाई
कम्बख़्त तभी नींद से बे-दार हुआ था
बस ख़्वाब में ही मिलती है वो राजकुमारी
मैं जिसकी निगाहों से गिरफ़्तार हुआ था
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’